रविवार, 11 जुलाई 2010

संघ की हत्या का प्रयास

‘‘अजमेर में 2007 में हुए बम विस्फोटों के अभियुक्तों का कथित रूप से बचाव करने पर आरएसएस के दो नेता सीबीआई की जांच के घेरे में आ गए हैं। एक न्यूज चैनल ने सीबीआई सूत्रों के हवाले से बताया कि उत्तरप्रदेश में आरएसएस के दो वरिष्ठ नेता अशोक वाष्र्णेय व अशोक बेरी ने न केवल अभियुक्त देवेंदर गुप्ता को अपने यहां ठहराया बल्कि लखनऊव सीतापुर में उसके ठहरने की व्यवस्था भी की। सूत्रों ने यह भी बताया कि देवेंदर ने यह खुलासा वाष्र्णेय व बेरी की उपस्थिति में सीबीआई अधिकारियों के समक्ष किया। वहीं अभियुक्त के वकील उमर दान ने कहा कि इन लोगों को राजनीतिक तौर पर निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा, सीबीआई का एक राजनीतिक एजेंडा है। वे एक निश्चित सोच के साथ लोगों को निशाने पर ले रही है। ये नेता किसी तरह की असामाजिक कार्रवाई में लिप्त नहीं हैं। इस बीच सीबीआई निदेशक ने इस बारे में कोई जानकारी देने से इनकार कर दिया। शनिवार को संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि सीबीआई जल्द ही इस मामले में हुई प्रगति की जानकारी कोर्ट के समक्ष रखेगी।’’
यह समाचार इन दिनों भारत के सेकुलर ब्रांड मीडिया की पंसदीदा खबरों में से एक है। 1925 से राष्ट्र साधना के पुनीत कार्य में लगे संघ और उसके प्रचारकों को इस प्रकार से सुनियोजित रूप से बदनाम करने के पीछे यूपीए सरकार के साथ-साथ उन विदेशी शक्तियों का हाथ होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता जो हिन्दूत्व के पुनरूत्थान को अपनी राह का सबसे बड़ा रोड़ा मानते है।
एक बार फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हत्या का प्रयास किया जा रहा है। यह न तो पहली बार है और न अंतिम बार। संघ की स्थापना 1925 में हुई तब से लेकर अब तक संघ पर कई बार जानलेवा हमला किया गया है। संघ के इतिहास में सबसे पहला, ज्ञात और बड़ा हमला 1948 में हुआ था। तब देश अंग्रेजों के कब्जे से मुक्त हुआ ही था, लेकिन विभाजन और हिन्दू नरसंहार की विभीषिका भी झेल रहा था। कांग्रेस के सर्वेसर्वा नेहरू को गांधी हत्या के रूप में एक बड़ा हथियार मिल गया। नेहरू ने गांधी की हत्या को अपने राजनीतिक कैरियर के लिए एक सुअवसर के रूप में देखा। एक तरफ गांधी को सिरे से नकारने और दूसरी ओर अपने विरोधियों के खात्मे का इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता था। नेहरू ने अंग्रेजों से हाथ मिलाया और गांधी हत्या में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आरोपित कर दिया।
देश में गांधी के प्रति स्थापित असीम श्रद्धा और सम्मान का नेहरू ने दुरूपयोग करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघ के खिलाफ इस्तेमाल किया। आजादी के बाद गलत नीतियां अपनाए जाने और गांधी को नकारने के कारण नेहरू के खिलाफ जो माहौल बन रहा था, उसे बड़ी चतुराई से संघ की आरे मोड़ दिया गया। एक तीर से कई-कई निशाने। यह नेहरू का राजनीति कौशल था जो उन्होंने गांधी और अंग्रेजों से सीखा था। नेहरू इस राजनीतिक कौशल का सीमित इस्तेमाल अंग्रेजों के खिलाफ कर पाये, लेकिन गांधी और संघ के खिलाफ उन्होंने इसका भरपूर इस्तेमाल किया। संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। संघ को समाज से तिरस्कृत और बहिष्कृत कर उसपर कानूनी शिकंजा कसने की काशिश भी की गई। सबको पता है कि गांधी हत्या मामले से संघ को बाइज्जत बरी कर देने और संघ को निर्दोष बताने के बावजूद कांग्रेस के नेता आज भी गांधी हत्या में संघ का नाम घसीटने से बाज नहीं आते। यह अलग बात है कि संघ के लोगों ने कभी कांग्रेसियों को न्यायालय की अवमानना का नोटिस नहीं दिया। संघ पर दूसरा जानलेवा हमला इंदिरा गांधी ने आपातकाल के समय किया। संघ को लोभ-लालच और भय से निष्क्रिय या कांग्रेस के पक्ष में सक्रिय करने का प्रयत्न किया गया। कांग्रेस की शर्त न मानने पर संघ को नेस्तनाबूत कर देने की कोशिश हुईं। इस बार भी संघ को प्रतिबंधित किया गया। संघ इस हमले न सिर्फ बाल-बाल बच गया बल्कि देश ने कांग्रेस को करारा जवाब भी दिया। संघ पर तीसरा बड़ा हमला 1992 में किया गया जब अयोध्या में विवादित बाबरी ढांचा टूटा। तब केन्द्र में कांग्रेस की ही सरकार थी और नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे। प्रधानमंत्री राव ने नेहरू की ही तरह कुटिल राजनीतिक कौशल का परिचय दिया। उन्होंने भी एक तीर से कई-कई निशाने लगाए। एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत विवादित ढांचे को ढहने दिया गया। बाद में ढांचे के विध्वंस में संघ-भाजपा को आरोपित कर पहले तो भाजपा की चार राज्य सरकारों को बर्खास्त किया गया और बाद में संघ पर प्रतिबंध लगाया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर यह तीसरा कांग्रेसी प्रतिबंध था। संघ की स्थापना और कार्य एक पवित्र उद्देश्य से है। संघ के स्वयंसेवक संघ कार्य को ईश्वरीय कार्य मानते हैं। संघ भारत राष्ट्र के परम वैभव के लिए प्रयत्नशील है। यही कारण है कि संघ पर बार-बार घातक और जानलेवा हमले होते रहे हैं, लेकिन संघ इस हमले से बार-बार सही सलामत बच निकला। कांग्रेस ने भले ही हमले किए हों, लेकिन समाज ने हमेशा संघ को स्वीकारा और सराहा। संघ हमेशा हिन्दू समाज की रक्षा करता आया है, इसीलिए कांग्रेसी हमलों से संघ को समाज बचाया है। संघ और हिन्दू शक्तियों पर ऐसे हमले न जाने कितनी बार हुए। उपर की गिनती तो सिर्फ बड़े हमलों की है। संघ के दुश्मनों ने कई बार रणनीति बदल कर हमले किए। पिछले लोकसभा चुनाव के पूर्व कांग्रेस की हालत पतली थी। आतंकवाद, आंतरिक सुरक्षा के खतरे, मंहगाई, अल्पसंख्यक तुष्टीकरण जैसे मुद्दों के कारण देश ने कांग्रेस को त्यागने का मन बना लिया था। भाजपा सहित अन्य राजनैतिक दल कांग्रेस को घेरने की पूरी तैयारी कर चुके थे। आर्थिक मुद्दों पर वामपंथी पार्टियों ने कांग्रेस की घेरेबंदी कर रखी थी। बढ़ती आतंकवादी घटनाओं ने कांग्रेस को कटघरे में ला खड़ा किया था। मुस्लिम तुष्टीकरण कांग्रेस की गले की हड्डी बन गया था। लेकिन इसी बीच ‘हिन्दू आतंकवाद’ का एक नया नारा गढ़ा गया। आतंकवाद और तुष्टीकरण की धार को हिन्दुओं और हिन्दू संगठनों की ओर मोड़ दिया गया। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने फिर से कुटिल राजनीतिक कौशल का परिचय दिया। मालेगांव विस्फोट में हिन्दू संगठनों को लपेटने का कुत्सित प्रयास किया गया। पूरी तैयारी के साथ हिन्दू संगठनों, खासकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर आक्रमण किया गया। साध्वी प्रज्ञा समेत कुछ हिन्दू कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर ‘पुलिसिया हथकंडे’ अपना कर जुर्म और आरोप कबूलवाने कीकोशिश की गई। 8 अप्रैल को महाराष्ट्र विधानसभा में सरकार के गृहमंत्री ने एक खुलासा किया। उन्होंने कहा कि मालेगांव के आरोपी संघ प्रमुख को मारना चाहते थे। 9 अप्रैल को समाचार पत्रों में महाराष्ट्र के गृहमंत्री के हवाले से इस आशय की खबर छपी कि मालेगांव विस्फोट के आरोपी हिन्दूवादी संगठनों की नजर में आरएसएस प्रमुख मोहनभागवत संगठन कानेतृत्व करने में सक्षम नहीं हैं। इन संगठनों ने भागवत की हत्या की साजिश भी रची थी। फोन पर भागवत के खिलाफ की गई टिप्पणी सहित कई अपशब्दों की रिकार्डिंग वाला टेप महाराष्ट्र पुलिस के पास है। यह सब रहस्योदघाटन महाराष्ट्र के गृहमंत्री आरआर पाटिल ने विधानसभा में किया। एनसीपी विधायक जितेन्द्र आव्हाड के एक सवाल कि क्या मालेगांव विस्फोट प्रकरण में गिरफ्तार साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित और अभिनव भारत संगठन से संबंधित लोगों ने भागवत की हत्या की साजिश रची थी? इसके जवाब में गृहमंत्री पाटिल ने सदन में कहा कि उनकी बातों में सच्चाई है। हालांकि बाद में विधान भवन परिसर में पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि भागवत कीहत्या की साजिश रचे जाने के बारे में ठोस ढंग से कुछ भी नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना पक्का है कि गिरफ्तार हिन्दूवादी अभियुक्तों के मन में भागवत के प्रति कटुता है। इन लोगों ने फोन पर आपसी बातचीत के दौरान भागवत के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल किया था। गौरतलब है कि 29 सितंबर, 2008 को रमजान के महीने में मालेगांव में हुए बम धमाके में 6 लोग मारे गए थे और 20 जख्मी हुए थे। महाराष्ट आतंक निरोधक दस्ते ने इस कांड के आरोपियों के संबंध दक्षिपंथी संगठन अभिनव भारत से होने की बात कही थी। संघ पर जानलेवा हमला करने वाले हमेशा की तरह फिर सक्रिय हो गए हैं। फर्क बस इतना है कि उनकी रणनीति बदल गई है ताकि पकड़े जाने पर उनका नुकसान न होने पाए। कांग्रेस को संघ, संघ के स्वयंसेवक और संघ प्रमुख के जान की चिंता कब से होने लगी? हत्या के आरोपी और हमलावर ही अपने दुश्मन की परवाह करने लगें तो दाल में कुछ काला जरूर नजर आयेगा। क्या कांग्रेस और उनके हुक्मरानों को पता नहीं है कि अपने राजनीतिक फायदे के लिए गत लोकसभा चुनाव के पहले हिन्दू संगठनों पर सुनियोजित हमले किए गए। ये हमले कांग्रेस ने किए ओर कराए। इस हमले में कांग्रेस ने सरकारी, गैर सरकारी और राजनीतिक संगठनों का भरपूर इस्तेमाल किया। देश के खुफिया संगठन आईबी और महाराष्ट्र पोलिस को मोहरा बनाकर न सिर्फ हिन्दू संगठनों को आरेापित और कलंकित किया गया बल्कि ‘हिन्दू आंतंक’ का जुमला भी विकसित किया गया। ह्यमहाराष्ट्र कांग्रेस के गृहमंत्री सदन को गुमराह कर सकते हैं, देश को नहीं। कांग्रेस और उनकी सुप्रीमों सोनिया गांधी के बारे में करोड़ों हिन्दू कटुता का भाव रखते हैं, उन्हें देश और कांग्रेस का नेतृत्व करने के लायक नहीं मानते कई बार अपने संस्कारों को भूल आक्रोशवश अपशब्दों का भी इस्तेमाल करते हैं। अनेक भारतीय कांग्रेस और सोनिया के बारे में आमने-सामने और कई बार फोन पर भला-बुरा कहते हैं, संभव है खिन्नता और अवसाद में वे कांग्रेस और सोनिया के अंत का विचार भी करते हों। तो क्या इसे कांग्रेस और सोनिया के खिलाफ हिन्दुओं की साजिश मान ली जाए और करोड़ों हिन्दुओं को साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया जाए? संघ पर हमला करने वाले बहुरूपिए फिर भेष बदल कर आए हैं। वे इस हिन्दू संगठनों की आड़ ले रहे हैं। हिन्दू संगठनों को बदनाम, कलंकित और तिरस्कृत करने की साजिश जारी है। हमलावरों को बेनकाब करने और समाज को सावधान रहने की जरूरत है। संघ प्रचारकों का नाम बम विस्फोट काण्ड या अन्य राष्ट विरोधी गतिविधियों में घसीटे जाने को न केवल इसी रूप में देखा जाना चाहिए बल्कि देश को हिन्दुत्ववादी शक्तियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देशभक्तों की मजबूती के लिए काम करने को तैयार भी रहना चाहिए।