सोमवार, 24 मई 2010

रंगनाथ की बदरंग सिफारिशें

लिब्राहन आयोग के बाद इस समय देश में रंगनाथ मिश्र आयोग की चर्चा है। आइए पहले इस आयोग के बारे में ही जान लें। मजहबी और भाषाई अल्पसंख्यकों की शिक्षा, आर्थिक स्थिति और सामाजिक हैसियत को बढ़ाने के लिए किस प्रकार के उपाय किए जा सकते हैं, यह पता करने के लिए केन्द्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने 29 अक्टूबर, 2004 को 'राष्ट्रीय मजहबी और भाषाई अल्पसंख्यक आयोग' का गठन किया था। चूंकि इस आयोग के अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति, रंगनाथ मिश्र बनाए गए थे, इसलिए इसे 'रंगनाथ मिश्र आयोग' कहा जाता है। इस आयोग के तीन सदस्यों में शामिल हैं- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष डा. ताहिर महमूद, सेन्ट स्टीफेन्स कालेज, दिल्ली के प्राचार्य डा. अनिल विल्सन और नेशनल इंस्टीटयूट आफ पंजाब स्टडीज, दिल्ली के निदेशक डा. महेन्द्र सिंह। केन्द्र सरकार में सचिव रह चुकीं श्रीमती आशा दास को इस आयोग का सदस्य-सचिव नियुक्त किया गया था। गठन के तुरंत बाद आयोग ने काम करना शुरू कर दिया। किन्तु 24 अगस्त, 2005 को सरकार ने आयोग के विषयों को और व्यापक बना दिया। आयोग से अनुरोध किया गया कि वह शिक्षा एवं सरकारी नौकरी में अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण किए जाने के बारे में और उनके अन्य प्रकार के कल्याण के लिए उपाय सुझाए। आयोग से एक दूसरा अनुरोध यह भी किया गया कि वह दलित ईसाइयों (अनुसूचित जाति के जिन लोगों ने मतान्तरण कर ईसाई पंथ अपना लिया है) एवं दलित मुसलमानों (अनुसूचित जाति के जिन लोगों ने मतान्तरण कर इस्लाम मत अपना लिया है) को आरक्षण दिए जाने के प्रयोजन के लिए अनुसूचित जाति के रूप में विनिर्दिष्ट किए जाने के औचित्य पर विचार करे। आयोग से यह भी अनुरोध किया गया कि वह इस मुद्दे पर विचार करे कि संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश के पैरा-3 में ईसाई व इस्लाम मत को शामिल किया जाए या नहीं। आयोग से अपनी रपट में इन मुद्दों पर स्पष्ट सिफारिश करने को कहा गया। इसके बाद 28 सितम्बर, 2005 की अधिसूचना संख्या-14/6/2005 एम.सी. के तहत आयोग के विचारार्थ विषयों में औपचारिक संशोधन किया गया। आयोग से अनुरोध किया गया कि वह आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा के सन्दर्भ में संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 के पैरा-3 के संबंध में उच्चतम न्यायालय और कुछ उच्च न्यायालयों में दाखिल की गई रिट याचिका संख्या 180/04 व 94/05 में उठाए गए मुद्दों तथा अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करने की रीति के विषय में सिफारिश करे। उल्लेखनीय है कि मतान्तरित ईसाइयों और मुसलमानों ने अनुसूचित जाति की तरह सुविधाएं पाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में रिट याचिकाएं दाखिल की हुयी हैं। इन याचिकाओं को देखते हुए सरकार ने उपरोक्त विषयों पर आयोग से सिफारिश देने को कहा। इसके बाद आयोग ने बहुत कम समय में रपट तैयार कर उसे 10 मई, 2007 को केन्द्र सरकार को सौंप भी दी। किन्तु एक रणनीति के तहत सरकार ने इसे सार्वजनिक नहीं किया। क्योंकि उस समय विरोध के बावजूद सच्चर कमेटी की सिफारिशों को जोर-शोर से लागू कराया जा रहा था। इसलिए सरकार रंगनाथ मिश्र आयोग की रपट को सार्वजनिक कर एक साथ दोहरा विरोध झेलने को तैयार नहीं थी। अपने लिए अनुकूल समय को देखते हुए सरकार द्वारा 18 नवम्बर, 2009 को इस आयोग की रपट संसद के दोनों सदनों में रखी गई। इसके बाद तो पूरे देश में इस आयोग की सिफारिशों को लेकर पक्ष-विपक्ष में हंगामा होने लगा। आयोग ने अल्पसंख्यकों को शिक्षा, सरकारी नौकरी व विभिन्न सामाजिक योजनाओं में 15 प्रतिशत आरक्षण देने की अनुशंसा की है। इस 15 प्रतिशत में 10 प्रतिशत मुस्लिमों और 5 प्रतिशत अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को देने की भी बात कही गई है। इसे कानूनी पचड़े से बचाने के लिए यह भी कहा गया है कि यह 15 प्रतिशत पिछड़े वर्ग के कोटे (27 प्रतिशत) से दिया जाए। यानी पिछड़े वर्ग के कोटे पर इस आयोग ने डाका डाला है। उल्लेखनीय है कि कानूनन 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता। इसके अतिरिक्त आयोग ने कई ऐसी सिफारिशें की हैं, जिनसे आगे चलकर अनेक प्रकार की समस्याएं पैदा हो सकती हैं। आयोग ने सिफारिश की है कि समान्य शिक्षा (प्राथमिक, माध्यमिक, स्नातक, स्नातकोत्तर) ही नहीं, बल्कि इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, प्रबंधकीय और व्यावसायिक पाठयक्रमों में भी अल्पसंख्यकों के लिए स्थान सुरक्षित किया जाए। इतना ही नहीं आयोग ने यह भी कहा है कि विभिन्न विषयों के शिक्षण और इनके लिए अपेक्षित साज-समान जैसे पुस्तकालय, पठन-कक्ष, प्रयोगशालाएं, छात्रावास, शयनगार आदि भी इस वर्ग के लिए तय किये जाएं। आयोग ने यह भी कहा है कि अल्पसंख्यकों के लिए निर्धारित 15 प्रतिशत स्थान किसी भी सूरत में बहुसंख्यकों को न दिया जाए। रपट में स्पष्ट लिखा गया है, 'निर्धारित 15 प्रतिशत सीटों में आपस में छोटे-मोटे समायोजन किए जा सकते हैं। निर्धारित 10 प्रतिशत सीटों को भरने के लिए मुस्लिम उम्मीदवार अनुपलब्ध होने की स्थिति में शेष रिक्तियां अन्य अल्पसंख्यकों को दी जा सकती हैं, बशर्ते उनके सदस्य 5 प्रतिशत के अपने हिस्से से अधिक के लिए उपलब्ध हों। किन्तु किसी भी स्थिति में संस्तुत 15 प्रतिशत में से कोई भी सीट बहुसंख्यक समाज को नहीं दी जाएगी।' यह भी कहा गया है कि अल्पसंख्यक समुदाय के वे उम्मीदवार, जो अन्यों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं और जो अपनी ही मेधा के बल पर प्रवेश पा सकते हैं, उन्हें 15 प्रतिशत की निर्धारित सीटों में शामिल न किया जाए। आयोग का कहना है कि मुसलमान देश का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है और यह समुदाय शैक्षिक रूप से सबसे अधिक पिछड़ा है। इसी आधार पर आयोग ने अनुशंसा की है, 'देश में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया जैसी चुनी हुई संस्थाओं को विधिक रूप से विशेष जिम्मेदारी दी जाए कि वे इस प्रयोजन के लिए सभी संभव कदम उठाते हुए मुसलमान छात्रों की सभी स्तरों पर शैक्षिक उन्नति करें। उन राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों, जिनमें मुस्लिम आबादी काफी संख्या में है, में इस प्रयोजन के लिए कम से कम एक ऐसी संस्था चुनी जानी चाहिए।'आयोग ने यह भी कहा है कि मुसलमानों द्वारा चलाए जा रहे सभी स्कूलों और कालेजों को पर्याप्त सहायता और अन्य मूलभत सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए। आयोग ने मदरसा आधुनिकीकरण योजना को सुदृढ़ बनाने पर बल देते हुए कहा है कि इस योजना को पर्याप्त राशि दी जाए। आयोग ने स्पष्ट कहा है कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में आंगनवाड़ी, नवोदय विद्यालय और इसी प्रकार की अन्य संस्थाएं खोली जानी चाहिए। मौलाना आजाद एजुकेशनल फाउण्डेशन द्वारा वितरित की जाने वाली निधि में पर्याप्त मात्रा मुसलमानों के लिए आनुपातिक आधार पर निर्धारित की जाए, जो अल्पसंख्यक आबादी में उनके अनुपात के अनुसार हो। आयोग ने सिफारिश की है कि उर्दू माध्यम से शिक्षा देने वाले विद्यालयों को विशेष सहायता दी जाए और उनकी दक्षता, स्तर और परिणामों को बढ़ाने के लिए वित्तीय एवं अन्य प्रकार की सहायता दी जाए। अल्पसंख्यकों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए आयोग ने 'आर्थिक उपाय' के अन्तर्गत कई सिफारिशें की हैं। पहली सिफारिश में कहा गया है कि कई अल्पसंख्यक समूहों को कुछ घरेलू और लघु उद्योगों में विशेषज्ञता प्राप्त है। इसलिए ऐसे सभी उद्योगों के विकास और आधुनिकीकरण के लिए कारगर पद्धति अपनाई जानी चाहिए और इनसे जुड़े कारीगरों, विशेषकर मुसलमान कारीगरों को उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। दूसरी सिफारिश में कहा गया है कि प्रधानमंत्री ग्रामीण योजना, ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना सहित सभी सरकारी योजनाओं में 15 प्रतिशत स्थान अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हो। रंगनाथ मिश्रा आयोग ने एक और महत्वपूर्ण सिफारिश की है और वह है- मतान्तरित मुस्लिमों और ईसाइयों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल करना। यहां यह बता देना आवश्यक है कि इस सिफारिश पर आयोग के ही सभी सदस्य एक राय नहीं रखते हैं। आयोग की सदस्य सचिव श्रीमती आशा दास ने इस सिफारिश का विरोध करते हुए लिखा है कि दलित ईसाई व दलित मुस्लिम को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल नहीं करना चाहिए। उन्होंने रपट में ही स्पष्ट लिखा है कि इस समय अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए क्रमश: 15 प्रतिशत व 7.5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है। यद्यपि 2001 की जनगणना के अनुसार इन दोनों वर्गों की आबादी काफी अधिक बढ़ चुकी है। अत: यदि मतान्तरित ईसाइयों और मुस्लिमों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाता है तो इससे सेवाओं, पदों व शैक्षणिक संस्थाओं में और अन्य मामलों में अनुसूचित जातियों को आरक्षण का जो लाभ मिल रहा है उस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। ऐसा लगता है कि यह रिपोर्ट पूरी तरह सरकारी निर्देश पर तैयार की गई है। पहले सच्चर कमेटी और अब रंगनाथ मिश्र आयोग की रपटों के आधार पर यह कांग्रेसनीत सरकार अपना वोट बैंक मजबूत करना चाहती है। इस तरह की देश घातक सिफारिशों को लागू करने में यह सरकार अंग्रेजों को भी पीछे छोड़ रही है। उल्लेखनीय है कि मतान्तरित ईसाइयों एवं मुस्लिमों ने अपने को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग 1936 में पहली बार उस समय की थी, जब अंग्रेज सरकार द्वारा अनुसूचित जाति की पहली सूची प्रकाशित की गई थी। किन्तु उस समय अंग्रेज सरकार ने इस मांग को पूरी तरह खारिज कर दिया था। इसके बाद संविधान सभा की बैठकों में भी ऐसी मांगे उठाई गई थीं। किन्तु डा. अम्बेडकर, नेहरू, सरदार पटेल, सी. राजगोपालाचारी तथा अन्य वरिष्ठ नेताओं ने ऐसी मांगों को मानने से साफ मना कर दिया था। किन्तु विडम्बना देखिए कि उन्हीं नेताओं की वारिस वर्तमान केन्द्र सरकार सत्ता में बने रहने के लिए देश-तोड़क सिफारिशें करवा रही है और उन्हें लागू भी कर रही है। सच्चर कमेटी के कारण पहले ही समाज में जहर घोला जा चुका है और अब रंगनाथ मिश्र आयोग के माध्यम से उस जहर को और घातक करने की कोशिश हो रही है।

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