सोमवार, 24 मई 2010

आतंकवादियों की अभिभावक:आई.एस.आई.

यूं तो इस्लामिक आतंकवाद ने दुनिया भर को परेशान कर रखा है लेकिन भारत इससे कुछ ज्यादा ही पीडि़त है। पश्चिमी देश आतंकवाद का विनाशकारी रूप अब देख रहे हैं जबकि भारत इसका भुक्तभोगी दशकों पहले से रहा है। भारत में इस्लामी आतंकवाद का आरंभ लगभग तब से होता है जब से विश्व राजनीति के मंच से समाजवादी रूस का पतन होता है। अमेरिका ने रूस के खिलाफ अफगानी मुजाहिदीनों का इस्तेमाल किया। इस कार्य में पाकिस्तान ने अमेरिका के सहयोगी की भूमिका निभाई। इसके एवज में पाकिस्तान ने अमेरिका से भारी-भरकम राशि ऐंठी थी। रूस के पतन के बाद बेरोजगार को चुके मुजाहिदीनों को शरण पाकिस्तान की भूमि पर मिली। शीत युध्द के दौरान मिले अमेरिकी धन का अधिकांश भाग पाकिस्तान की आईएसआई एजेंसी ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को फैलाने में झोंक दिया। प्रारम्भ की अनदेखी के कारण अब आतंकवाद केवल जम्मू-कश्मीर तक सीमित नहीं रह गया है बल्कि इसकी काली छाया पूरे देश को ढक चुकी है और हम असहाय बनकर इसे देख रहे हैं। आईएसआई भारत विरोधी गतिविधि चलाने के लिए बांग्लादेश की जमीन का भी इस्तेमाल करती है। इस बात के पक्के प्रमाण हैं कि आईएसआई के ही सहयोग से भारत के पूर्वी छोर पर बांग्लादेश में आतंकवादी कैम्प चल रहे हैं जो हमारे देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र को अस्थिर करने में संलिप्त हैं। इस प्रकार आईएसआई भारत में आतंकवाद का पूर्व-पश्चिम कारिडोर बनाने में सफल रही है। वर्तमान वैश्विक राजनीति में एक ध्रुवीय विश्व-व्यवस्था डांवाडोल हो रही है। अगली सदी यूरोप या अमेरिका की नहीं, बल्कि एशिया की है। एशिया में भारत और चीन उभरती आर्थिक महाशक्ति हैं। महाशक्ति बनने के अभियान में चीन का एशियाई प्रतियोगी भारत है। इधर अमेरिका भी इस बात को भली-भांति जानता है इसलिए वह भी दक्षिण एशियाई राजनीति में घुसपैठ करने के फिराक में जोर-आजमाइश करता रहता है। भारत में इस्लामी आतंकवाद के बारे में चर्चा की करते समय विश्व राजनीति के बडे क़ैनवास को भी ध्यान में रखना आवश्यक है। पाकिस्तान चीन से छुपे रूप में सैन्य और हथियारों की तकनीक प्राप्त करता है। अमेरिका पर हुए 9/11 के आतंकवादी हमलों के बाद वह आतंकवाद से लडऩे के नाम पर अमेरिकी आर्थिक सहायता भी प्राप्त कर रहा है। पाकिस्तान इनका उपयोग भारत के खिलाफ अपनी पुरानी शत्रुता निभाने में करता है। पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में वही नीति अपनाता रहा है जो कभी अमेरिकी सीआईए ने अफगानियों के साथ मिलकर रूस के खिलाफ अपनाई थी। आज आईएसआई के एजेण्ट भारत में महत्वपूर्ण क्षेत्रों में प्रवेश पा चुके हैं और सक्रिय हैं। जब कभी भी आतंकवाद के खिलाफ कोई कठोर नीति अपनाई जाती है तब तथाकथित मानवतावादी मानवाधिकार की दुहाई देकर खूब हो हल्ला मचाने लगते हैं। इनका सिध्दान्त है कि 'झूठ को इतना बोलो और इतनी जोर से बोलो कि वह सच लगने लगे। बहरहाल, मुम्बई आतंकवादी हमले से ये सवाल लोगों के मन में कुनबुना रहे हैं कि क्या राष्ट्र और समाज को चोट पहुंचाने वाले आतंकवादियों की हमारी पुरुषार्थ विहीन सरकार चरणवंदना करती रहेगी? या फिर वो आतंकवादियों के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई करेगी?

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