सोमवार, 24 मई 2010

फिर धमाके का दुस्साहस

मुंबई हमलों के बाद शांति थी, लेकिन नए आतंककारी हमले ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया है। आंतरिक सुरक्षा पर दिल्ली में हाल ही में सम्पन्न मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में आतंकवाद व नक्सली आंदोलन जैसी समस्याओं से निपटने के लिए केन्द्र और राज्यों के बीच सहयोग बढाने की जरू रत बताई गई। इससे पहले केन्द्रीय गृहमंत्री ने अपने उद्घाटन भाषण में कश्मीर के हालात का उल्लेख करते हुए कहा था कि वहां हिंसक घटनाएं कम हुई हैं, हालांकि घुसपैठ बढी है। सम्मेलन में इस बात पर संतोष जताया गया था कि 26/11 के बाद से कोई आतंककारी हमला नहीं हुआ है और सरकार ने आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए कई कदम उठाए हैं। लश्कर-ए-तैयबा व उसके सहयोगी संगठनों के संभावित आतंककारी हमलों की चेतावनी व संकेतों को ध्यान में रखकर इस पर औपचारिक चर्चा भी होनी चाहिए थी। हाल ही में आजमगढ से पकडे गए शहजाद अहमद से पूछताछ में मिली जानकारी भी स्पष्ट चेतावनी थी। उसने पूछताछ में कहा बताया कि जिन स्थानों पर विदेशी पर्यटकों का आवागमन ज्यादा होता है, वहां इंडियन मुजाहिदीन हमले की साजिश रच रहा है। इन स्थानों में गोवा और आगरा तो थे ही, कई प्रमुख होटल व रेस्टोरेंट भी संभावित लक्ष्यों में शामिल थे, जहां विदेशी पर्यटक अक्सर आते-जाते या ठहरते हैं। इन स्थानों में पुणे की जर्मन बेकरी भी शामिल थी, जिसके पास ही ओशो आश्रम स्थित है। अमरीकी गुप्तचर एजेंसियों ने भी आतंककारियों के ऐसे ही संभावित हमले की सूचना दी थी। अमरीका ने तो भारत आने वाले अमरीकी पर्यटकों को भीडभाड वाले स्थानों से बचने व बेहद सतर्कता बरतने की सलाह भी जारी कर रखी है। इस सबके बावजूद लगता है कि पर्याप्त सतर्कता नहीं बरती गई। पाकिस्तान आधारित आतंककारी गुटों के निशाने पर पुणे भी है, यह तो लश्कर के डेविड कोलमेन हेडली के दो बार पुणे आने और वहां अब हुए विस्फोट स्थल के पास के एक होटल में ठहरने की जानकारी से ही साफ था। ओशो आश्रम और यहूदियों का उपासना स्थल इस स्थान के निकट होने के कारण वहां विशेष रू प से असाधारण उपाय किए जाने चाहिए थे। अहमदाबाद में वर्ष 2008 में हुए बम विस्फोटों के बाद से ही पुणे को इस्लामी आतंककारी गुटों का एक बडा ठिकाना माना जाता है। तब वहां पुलिस ने स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) से जुडे आतंककारियों के मददगारों को गिरफ्तार किया था। गिरफ्तार लोगों ने पूछताछ में बताया था कि वे कुख्यात आतंककारी तौकीर को जानते हैं, जो पुणे के आजम परिसर में अक्सर आता रहता था। इस परिसर में कई कॉलेज हैं, जिनमें उक्त गिरफ्तार लोगों में से भी कुछ पढते थे। भारतीय गुप्तचर एजेंसियों के पास भी ऐसी सूचनाएं थीं कि भटकल बंधु रियाज व इकबाल और अब्दुस सुभान कुरैशी उर्फ तौकीर जैसे इंडियन मुजाहिदीन के मुखिया इस इलाके में सक्रिय हैं, हालांकि अब ऐसी सूचनाएं हैं कि ये तीनों अब पाकिस्तान में हैं। निश्चय ही पुणे में इंडियन मुजाहिदीन के ढांचे को पूरी तरह खत्म कर देना चाहिए। गुप्तचर एजेंसियों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि इनके मददगार (स्लीपर सैल्स) बचने न पाएं। अहमदाबाद, दिल्ली व जयपुर में हुए बम विस्फोटों और सूरत में बरामद बिना फटे बमों के मामलों की जांच और विस्फोटों से पहले तथा बाद में भेजे गए ई-मेल के आधार पर पुलिस ने इंडियन मुजाहिदीन के 21 संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार किया गया था। ऐसे 6 अन्य लोग फरार हैं। इन 21 में से कम से कम 7 या तो पुणे के रहने वाले हैं या वहां से गिरफ्तार हुए हैं। पांच अन्य गिरफ्तार लोग पुणे आ-जा चुके थे और हमलों की साजिश रचने वालों के सहयोगी थे। जांच एजेंसियों ने इंडियन मुजाहिदीन के सदस्यों के खिलाफ जो आरोप तय किए हैं, उनमें पुणे के अशोका म्यूज क्षेत्र में स्थित एक अपार्टमेंट में बम तैयार कर उन्हें लक्ष्य स्थलों तक पहुंचाने का आरोप भी शामिल है। निश्चित रू प से पूरे देश में नहीं, पुणे में भी इंडियन मुजाहिदीन को खत्म करने के लिए यह पर्याप्त नहीं है। सबसे अधिक विक्षुब्ध करने वाला तथ्य यह है कि इतनी सारी जानकारी और गुप्तचर सूचनाओं के बावजूद आतंककारियों के सबसे ज्यादा संभावित हमलों के स्थलों पर सामान्य एहतियाती उपाय तक नहीं किए गए। जनता में जागरूकता की कमी है और जो आम लोग अखबार नहीं पढते या टीवी के न्यूज चैनल नहीं देखते, उन्हें क्या सतर्कता बरतनी चाहिए, यह जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जाती। यह इस बम विस्फोट का सबसे बडा कारण है। यदि आम आदमी को इस बारे में जागरूक और शिक्षित नहीं किया गया, तो ऐसे बम विस्फोट भविष्य में भी जारी रह सकते हैं। पुणे में इस शनिवार को हुए विस्फोट में वह सुपरिचित तरीका अपनाया गया, जैसा पहले भी कई बम विस्फोटों में अपनाया जा चुका था। लेकिन इस बार विस्फोट के निशाने पर विदेशी पर्यटक थे, इसलिए स्पष्ट है कि इसमें विदेशी हाथ ही होगा। लश्कर-ए-तैयबा भारतीयों का उपयोग कर विश्व को यह बताना चाहता है कि पाकिस्तान या अन्य कोई नहीं स्वयं भारतीय ही विस्फोटों के लिए जिम्मेदार हैं। यह विस्फोट इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि पाकिस्तान से बातचीत फिर शुरू करने की भारत की पेशकश के शीघ्र बाद यह किया गया है। इसका बातचीत पर क्या असर पडेगा, इस बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन इसके बाद भारत वार्ता में निश्चित रूप से अन्य मामलों की तुलना में आतंकवाद को अधिक ध्यान में रखेगा। वार्ता रद्द करना सही कदम नहीं होगा, क्योंकि ?सा करके तो हम आतंककारियों के हाथों में खेलेंगे, जो उपमहाद्वीप में शांति नहीं चाहते। देशवासियों की नजर इस ओर रहेगी कि सरकार विस्फोट के लिए जिम्मेदार लोगों को पकडने के लिए क्या कदम उठाती है। सरकार की ओर से सभी प्रयासों के बावजूद आतंककारी कुछ और विस्फोट या हमले करने में सफल हो सकते हैं। जनता को हर कीमत पर विभिन्न समुदायों में शांति सद्भाव कायम रखना चाहिए।

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