सोमवार, 24 मई 2010

पर्यावरण-संरक्षण में महिलाओं का योगदान

पर्यावरण प्रदूषण ने न केवल मानव-अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया है, अपितु इसके कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि, पीने योग्य जल की कमी, प्राकृतिक वनस्पति एवं जीव-जन्तुओं की विभिन्न प्रजातियां समाप्ति की ओर हैं। ऐसी निराशाजनक स्थिति में पर्यावरण संरक्षण एवं पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने में महिलाओं की सहभागिता एवं महत्वपूर्ण योगदान को रेखांकित करना आवश्यक है ताकि इस ज्वलन्त समस्या के समाधान में महिलाओं की भागीदारी को और अधिक बढ़ाया जा सके। आदिकाल से ही महिलाओं का प्रकृति से तादात्म्य व जुड़ाव रहा है तथा वे प्रकृत्ति के स्वरूप को यथावत् रखने व उसके संरक्षण के प्रति सजग, सचेत व सचेष्ट रही हैं। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् वन्दना शिवा ने भी इस तथ्य की ओर संकेत करते हुए कहा है कि, 'प्रकृति और महिला में समानता है, क्योंकि दोनों ही पोषण करती हैं। देश की महिलाएं वृक्षों, नदियों, जल स्त्रोतों व कुओं की पूजा विविध रूपों में करती हैं, जो कि उनके प्रकृत्ति प्रेम एवं प्रकृति के प्रति आस्था व समर्पण का परिचायक है। वृक्षों में विशेष रूप से पीपल, वटवृक्ष, खेजड़ी, केला, आंवला व तुलसी की पूजा व सिंचन करते हुए महिलाएं पर्यावरण-संरक्षण में अतुलनीय योगदान दे रही हैं। गौरतलब है कि पीपल अत्यधिक मात्रा में आक्सीजन छोड़कर एवं उससे लगभग दुगुनी मात्रा में कार्बन डाई-आक्साइड गैस को अवशोषित करके पर्यावरण शुद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। इसी भांति, तुलसी जैसा पवित्र पादप श्रद्धा, आस्था व प्रेम का केन्द्रबिन्दु है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी तुलसी पर्यावरण संरक्षण हेतु बेहद लाभप्रद है। यह अंतरिक्ष के ओजोन परत के छिद्रों को भरने में सक्षम है जिससे पराबैंगनी किरणों से मानव की रक्षा होती है। गंगा, यमुना, नर्मदा एवं काबेरी जैसी पवित्र नदियों को 'मां' की उपमा से विभूषित किया जाता है तथा महिलाएं उनको भी पूजा-अर्चना करके व उनमें स्नान को पवित्र मानते हुए समाज को उनके संरक्षण का संदेश दे रही हैं। महिलाओं ने विविध आंदोलन व कार्यक्रमों के माध्यम से पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम हेतु सतत् व प्रभावी प्रयास किये हैं। ज्ञातव्य है कि लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व राजस्थान के एक राजा ने चूना बनाने के लिए अपने रजवाड़े को खेजड़ी के पेड़ों को कटवाने का आदेश दिया। अमृतादेवी नामक विश्नोई महिला के नेतृत्व में अनेक महिलाओं ने इन वृक्षों से चिपककर वृक्षों की कटाई को रोका एवं समाज को वृक्षों के संरक्षण का संदेश दिया। यद्यपि तत्कालीन सामन्तशाही ने इन महिलाओं को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया, किन्तु इस आंदोलन ने पर्यावरण-संरक्षण का सशक्त उदाहरण प्रस्तुत किया। इसी प्रकार, उत्तराखण्ड में उत्तरकाशी की महिलाओं ने 'रक्षा सूत्र' आंदोलन का सूत्रपात करते हुए पेड़ों पर 'रक्षा धागा' बांधते हुए उनकी रक्षा का संकल्प लिया। पर्यावरणविद् वंदना शिवा, सुनीता नारायण, मेनका गांधी आदि पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरण जागरूकता एवं महिलाओं में पर्यावरण चेतना के बीज बोने हेतु अथक व अनवरत प्रयास कर रही हैं। वर्ष 2004 में नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित बंगारी मथाई ने 'ग्रीन बेल्ट आंदोलन' का शुभारम्भ करते हुए पर्यावरण के क्षेत्र में महिलाओं को अन्तरराष्ट्रीय मान्यता दिलाने हेतु अनवरत संघर्ष किया। बंगारी मथाई द्वारा प्रस्तुत चार 'आर' की अवधारणा अर्थात् 'रिड्यूस, रियूज, रिसायकल व रिपेयर' को मूर्त रूप प्रदान करके सम्पूर्ण विश्व को पर्यावरण-संरक्षण का कवच उपलब्ध कराना संभव है। आज देश की महिलाएं विविध प्रकार से पर्यावरण-संरक्षण के यज्ञ में आहुति देकर पर्यावरण प्रदूषण की विकट समस्या का समाधान कर सकती हैं। महिलाएं घर व मोहल्ले की सफाई व्यवस्था का समुचित प्रावधान करके, घर के सूखे व गीले कचरे के लिए पृथक् व्यवस्था करके व कचरे को पुन: उपयोगी बनाने का प्रावधान करके पर्यावरण की स्वच्छता में योगदान दे सकती हैं। इसी भांति, घर की सफाई, बरतन व स्नान आदि में जल के अपव्यय व दुरुपयोग को रोककर जल-बचत कर सकती हैं तथा जल-संकट को कम कर सकती हैं। गृहणियां बायोमास व उन्नत चूल्हे का उपयोग करके, सौर ऊर्जा का वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में अधिकाधिक उपयोग करके कार्बन उत्सर्जन की मात्रा में कटौती करके पर्यावरण-प्रदूषण में कमी ला सकती हैं। अधिकांश ग्रामीण महिलाएं नदी, तालाब व जोहड़ में स्नान व वस्त्र धोने में साबुन का उपयोग करके जल स्त्रोतों को प्रदूषित करती हैं। ये महिलाएं पर्यावरण के प्रति जागरूक होकर इन जल स्त्रोतों को दूषित होने से बचा सकती हैं। इसके साथ ही, प्रदूषित जल के सेवन से होने वाले रोगों पर भी नियंत्रण किया जा सकता है। ग्रामीण महिलाएं खेती का कार्य करते हुए प्रकृति व पर्यावरण से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई हैं। अत: ग्रामीण महिलाओं को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील, जागरूक व पर्यावरण-संरक्षण के लिए प्रोत्साहित करके पर्यावरण पर मंडराते संकट को टाला जा सकता है।

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