बुधवार, 12 मई 2010

मतांतरण ही है आतंकवाद की जड़

आज दुनिया में यदि सबसे बड़ी कोई समस्या है तो वह है आतंकवाद। दुनिया के ज्यादातर देश इस समस्या से ग्रस्त हैं। इससे निपटने के लिए राजनीतिज्ञों से लेकर समाजशास्त्रियों तक, सभी अपने-अपने ढंग से विश्लेषण कर रहे हैं और इस रोग को समाप्त करने के लिए अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर इसका समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हैं। इस बात पर सभी एकमत हैं कि मनुष्य को मजहबी उन्मादी बनाकर बहुत जल्दी उसे आतंकवादी बनने का पाठ पढ़ाया जा सकता है। मजहबी कट्टरता जब उसके मन-मस्तिष्क पर चढ़कर बोलती है तो वह केवल एक ही दिशा में सोचने लगता है। उसके सामने लक्ष्य होता है अपने उद्देश्य की पूर्ति। उद्देश्य कितना ठीक है और कितना गलत, उस पर विचार करने की उसमें शक्ति नहीं होती, वह तो केवल अपनी धुन में होता है। इसलिए दुनिया में मजहब के नाम पर अब तक जितनी लड़ाइयां हुई हैं वे इतनी भीषण और खतरनाक सिद्ध हुई हैं कि उन्हें थमने में लम्बा समय लगा है। 'क्रूसेडÓ इसका जीता-जागता उदाहरण है। वर्षों तक मुसलमान और ईसाई आपस में लड़ते रहे थे। पर युद्ध समाप्त हो जाने पर भी शत्रुता की भावना दूर नहीं होती है। राष्ट्रों के बीच लड़े गए प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हो गए, लेकिन मुस्लिम और ईसाई तथा यहूदी और मुस्लिमों के बीच संघर्ष आज भी ज्यों का त्यों है। आज इजरायल में यहूदी और मुस्लिम जिस तरह से लड़ रहे हैं उससे तो यही सिद्ध होता है कि सदियों पुरानी जंग कभी भी फिर सुलग सकती है। मजहब चूंकि सत्ता पाने का माध्यम रहा है इसलिए उसे अत्यंत नशीला और तीखा बनाकर उसका दुरुपयोग किया जाता है। इस्लामी जगत में मजहब और युद्ध, दोनों साथ-साथ चलते रहे हैं। अपने मजहब की जीत के लिए उसे जुनूनी बनाकर पेश करना उनका मुख्य हेतु रहा है। इसलिए मजहबी युद्ध और जिहाद शब्द बहुत तेजी से प्रचलित हुए। इस्लाम ने इसके लिए 'शहीदÓ और 'गाजीÓ जैसी शब्दावलियां प्रचलित की हैं। इससे लडऩे वाले योद्धा का मनोबल बना रहता है। उसके दिमाग में भरा जाता है कि मर जाने पर उसके 'जन्नत जानेÓ की पक्की गारंटी है और जीत गए तो दुनिया के सभी ऐशो-आराम उसके कदमों में लोटने लगेंगे। इसलिए आज जो आतंकवाद है वह भी मजहबी युद्ध का ही दूसरा नाम है। इसलिए घूम-फिरकर मजहब जैसे पवित्र भाव पर बार-बार विचार करना पड़ता है। अपने मतावलम्बियों की संख्या में वृद्धि हो, यह ज्यादातर मत-पंथ चाहते हैं। इसलिए मतांतरण की प्रक्रिया निरंतर चलती रही है। दुनिया में ईसाइयत तो मतांतरण को अपना एकमेव एजेंडा मानकर सारे जगत में लोगों को ईसाई बनाने का आंदोलन चलाए है। तो उधर इस्लाम का यह विश्वास है कि 'एक दिन इस धरती पर केवल इस्लामÓ का ही साघाज्य होगा। मध्य एशिया से निकले तीनों पंथ- ईसाइयत, यहूदियत और इस्लाम-मतांतरण को सबसे 'पवित्र कामÓ समझते हैं, जबकि कृषि प्रधान देश भारत का हिन्दू धर्म, ईरान का जरथ्रुष्ट और चीन का कंफ्यूशियस मत मतांतरण की बात नहीं करते बल्कि अपने धर्म-पंथ को अपने जीवन में उतारने और उन सिद्धांतों पर जीवन यापन करने को बहुत महत्व देते हैं। दुनिया में आतंकवाद किसी न किसी रूप में हमेशा से रहा है। लेकिन मजहबी आतंकवाद 20वीं शताब्दी के अंतिम दशक से जिस तरह प्रारंभ हुआ वह सन् 2010 के शुरू होने पर भी समाप्त नहीं हुआ है। एशिया में इसकी शुरुआत पाकिस्तान से हुई है। जम्मू-कश्मीर पर कब्जा करने के लिए पाकिस्तान ने मजहब के नाम पर अनेक आतंकवादी गुट बनाए। मध्य पूर्व की राजनीति में उबाल उस समय आया जब अरब देशों ने फिलिस्तीन को बचाने के लिए आतंकवाद का दामन थामा। इसमें विमान अपहरण जैसी घटनाएं घटीं। बाद में इराक ने ईरान पर चढ़ाई करके उसकी सार्वभौमिकता को ललकारा। जब रूस ने अफगानिस्तान में घुसपैठ की तो अमरीका ने इस्लामी आतंकवाद को हवा देकर वहां संघर्ष को ताकत प्रदान की। उसके बाद रूस तो वहां से चला गया, लेकिन अमरीका को वहां से निकालने के लिए आतंकवाद सारी दुनिया में फैल गया। अमरीका में जब 11 सितम्बर की आतंकवादी घटना घटी तो दुनिया को पता चल गया कि अल कायदा और तालिबान जैसे संगठन इस्लाम के नाम पर अस्तित्व में आए और उसे मजहबी उन्माद में बदल दिया। अब सारी दुनिया में मुस्लिम बनाम अमरीका, ब्रिाटेन, यूरोप और आस्ट्रेलिया का यह रोग फैल चुका है। संक्षेप में कहा जाए तो आज इस्लाम के नाम पर हर जगह मुसलमान दुनिया के अन्य मतावलम्बियों से लड़ रहा है। इसलिए सामान्यत: यह कहा जाने लगा है कि हर आतंकवादी मुसलमान है। मुसलमान का तो कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन इस्लाम जैसा मजहब शंका के कठघरे में खड़ा हो गया। जब अपने मजहब के लिए कोई व्यक्ति आतंकवादी बन जाता है उस समय यह सवाल खड़ा हो जाता है कि किसी को आतंकवादी बनाने के लिए क्या क्या करना पड़ता है? बहुत स्पष्ट है कि उसे लड़ाकू बनने की तालीम देनी पड़ती होगी। उसे अत्यंत क्रूर बनाना पड़ता होगा और जिस काम के लिए उसे यह प्रशिक्षण दिया जा रहा है उसको पूरा करने के लिए इस जीवन में और आने वाले जीवन में क्या-क्या मिलेगा इसका उसे विश्वास दिलाना पड़ता होगा। कौन सा व्यक्ति सरलता से आतंकवादी बन जाता है, जब इसका विश्लेषण करते हैं तो पता चलता है कि जो नव मतांतरित है, उसके दिमाग में मजहब का जुनून तेजी से घर कर लेता है। वह अपने इस नए अपनाए मजहब के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। सर पर कफन बांधकर अपने नए अपनाए मजहब के लिए 'शहीदÓ हो जाने में उसे बहुत समय नहीं लगता। उसे ज्यों ही मजहबी उन्माद का घोल पिलाया जाता है वह नशे में चूर हो कर अपनी जान की भी चिंता नहीं करता। पिछले दिनों वाशिंगटन पोस्ट में एक रपट प्रकाशित हुई है, जिसके अनुसार सबसे खतरनाक आतंकवादी वही बना जो नया-नया मतांतरित हुआ था। इस्लामी दुनिया में जो लोग मतांतरित किये जा रहे हैं वे बहुत जल्दी जिहादी बन जाते हैं इसलिए अमरीका और यूरोप में कट्टरवादी मौलाना अपने संगठनों के माध्यम से उन्हें मुजाहिद्दीन, तालिबान अथवा अल कायदा का सदस्य बनाकर मोर्चे पर लडऩे के लिए भेज देते हैं। वाशिंगटन पोस्ट ने अमरीका, यूरोप और अफ्रीका के नव मतांतरित लोगों की एक लम्बी सूची प्रकाशित की है, जिसके अनुसार 168 नव मतांतरित मुसलमान जिहादी बनकर अपने आकाओं के आदेशानुसार भिन्न-भिन्न मोर्चों पर जाकर आत्मघाती बन बनकर 'शहीदÓ हो गए। इसमें अधिकतर संख्या मुस्लिमों की है। इतना ही नहीं, ये नव मतांतरित उच्च श्रेणी की शिक्षा पाए हुए हैं। कोई इंजीनियर है तो कोई डाक्टर, कोई वैज्ञानिक है तो कोई प्राध्यापक। ये नव मतांतरित एक देश या एक महाद्वीप के नहीं हैं, पर वे सभी एक मजहब, इस्लाम के झंडे तले आ मिले हैं। आर्थिक रूप से उनका स्तर अच्छा है। नाइजीरियाई उमर फारुक अब्दुल मुत्तलिब ने ब्रिाटेन में शिक्षा प्राप्त की थी और वह यमन में प्रशिक्षित हुआ था। क्रिसमस के दिन उसने एक विमान में बम विस्फोट किया। अनवरुल इलाकी नामक आतंकवादी, जो इस्लामी प्रसारक बन गया, वह कोलेराडो विश्वविद्यालय में सिविल इंजीनियरिंग का छात्र रहा था। निदाल मलिक हसन अमरीकी सेना में डाक्टर था, उसने टेक्सास में अंधाधुंध गोलियां चलार्इं। अमरीकी नस्ल के भी नव मतांतरित आतंकवादी बने, जिनमें डेनियल पेट्रिक हाइड का नाम सभी जानते हैं। ओलियोराए नामक अमरीकी लेखक लिखता है कि इन सभी के मस्तिष्क में विश्व भर में इस्लामी राज की कल्पना को यथार्थ में बदलने की धुन सवार है। ये नव मतांतरित आतंकवादी बनकर एक संगठन से दूसरे संगठन में घूमते रहते हैं। कभी-कभी तो कोई पिता ही अपने बेटे के बारे में यह सूचना देता है कि उसका पुत्र आतंकवादी बन गया है। उदाहरण के लिए, अब्दुल मुत्तलिब के पिता ने अपने बेटे के बारे में अमरीकी सरकार को सूचित किया था कि उसका बेटा आतंकवादी बन गया है। नव मतांतरितों के सामने तो केवल इस्लामी राज कायम करना ही मुख्य आकर्षण होता है। लेकिन उनके आका उनका उपयोग अपने हर स्वार्थ की पूर्ति के लिए करते हैं। इसलिए दुनिया से आतंकवाद को समाप्त करना है तो सबसे पहले मतांतरण पर प्रतिबंध लगाना होगा। भारतीय उपखंड में मतांतरण तेजी से हो रहा है इसलिए अपने मत-पंथ के प्रति जागरूक लोगों को इस बात की चिंता करनी होगी कि मतांतरण बंद हो ताकि उनके यहां ऊंची-ऊंची बांग देने के लिए कोई नया मुल्ला पैदा न हो जाए। चर्च ने जो मतांतरण की राजनीति की उसका नतीजा आज वे भुगत रहे हैं। कल यही दृश्य मुसलमानों को भी देखना पड़ सकता है।

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