सोमवार, 24 मई 2010

मुम्बई पर आक्रमण से सबक लें भारत

आज इस बात पर बहस करने से कोई लाभ नहीं है कि इस्लाम शांति की शिक्षा देता है कि नहीं और इसका भी कोई मतलब नहीं है कि कितने इस्लामी संगठनों ने आतंकवाद के विरूद्ध फतवा जारी किया है। आज मानवता के अस्तित्व का प्रश्न है और इस अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा किया है ऐसे इस्लामवादी आन्दोलन ने जो विश्व पर फिर से इस्लामी साम्राज्य स्थापित करने की आकांक्षा लिये शरियत का शासन स्थापित करना चाहता है और इसके लिये कुरान और हदीस का उपयोग कर रहा है।
26 नवम्बर 2008 को मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण के बाद से ताज होटल में अंतिम आतंकवादी के मार गिराये जाने तक पूरा घटनाक्रम टीवी पर चिपक कर देखता रहा। इस घटनाक्रम को देखते हुए एक प्रश्न मस्तिष्क में बार-बार कौंध रहा था कि क्या वास्तव में इससे कोई सबक लेगा और निश्चित रूप से मुझे यही लगा कि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला। क्योंकि यह कोई पहला आतंकवादी आक्रमण नहीं है और मानवीय क्षति के सन्दर्भ में इससे भी बड़ी घटनायें भारत में हो चुकी हैं लेकिन उनसे तो भारत ने कोई सबक नहीं लिया तो इस घटना से उसकी आंखें क्यों खुलने लगी। फिर भी आतंकवादी आक्रमण के सन्दर्भ में यह एक नये किस्म का आक्रमण था। एक तो यह घटना देश के उस शहर में हुई जिसे देश की आर्थिक राजधानी माना जाता है और मुम्बई में हुई अन्य घटनाओं की अपेक्षा इस बार इसका अंतरराष्ट्रीय सन्देश अधिक था और यही वह कारण है जिसने इस आक्रमण को विश्वव्यापी स्तर पर चर्चा में ला दिया। जिस प्रकार विदेशी नागरिकों और विशेष रूप से अमेरिकी, ब्रिटिश, इजरायली और भारतीय यहूदियों को निशाना बनाया गया उसने इस बात की आशंका बढ़ा दी कि इस आतंकवादी आक्रमण के पीछे कहीं न कहीं वैश्विक जेहादी आन्दोलन और नेटवर्क की भूमिका है। मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण के बाद दो तीन दिनों तक पूरे विश्व का ध्यान भारत की ओर लगा रहा कि हम इस स्थिति से कैसे निपटते हैं। मुम्बई का यह संकट समाप्त होने के उपरांत इसकी समीक्षा आरम्भ हुई है। विश्व के अनेक देशों की खुफिया एजेंसियां इस बात पर एकमत हैं कि इस आक्रमण के पीछे पाकिस्तान स्थित इस्लामी आतंकवादियों की भूमिका है परंतु उनका यह भी मानना है कि यह आक्रमण कुछ नये संकेत भी दे रहा है। एक तो यह कि अल कायदा अब आतंकवादी आक्रमण करने वाला आतंकवादी संगठन मात्र ही नहीं रह गया है वरन् वह एक विचारधारा बन चुका है जो विश्व के अनेक क्षेत्रो में विभिन्न इस्लामी उग्रवादी संगठनों को एक छतरी के नीचे लाकर उनसे घटनाओं को अंजाम दिलाता है। निर्णय और विचार उसका होता है और घटनायें विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय इस्लामी उग्रवादी संगठन करते हैं। मुम्बई में हुए आतंकवादी आक्रमण से यही संकेत मिलता है कि यह योजना अल कायदा की है और इसे अंजाम देने का दायित्व भारत में अपनी पैठ जमा चुके लश्कर- ए-तोएबा को दी गयी। मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण से समस्त विश्व हिल गया है क्योंकि इस आक्रमण ने जेहादी इस्लामी आन्दोलन की विश्वव्यापी पहुंच को रेखांकित किया है। अमेरिका की खुफिया एजेंसी के अधिकारी और आतंकवाद विषय के विशेषज्ञ मानते हैं कि अल कायदा अमेरिका की वर्तमान स्थिति को देखते हुए किसी बड़ी घटना को क्रियान्वित करने की फिराक में है ताकि बुश को विदाई दी जा सके और बराक ओबामा का स्वागत किया जा सके। इस आधार पर इस बात की आशंका व्यक्त की जा रही है कि मुम्बई का आतंकवादी आक्रमण अल कायदा की योजना का ही परिणाम है क्योंकि जिस लश्कर ने आतंकवादियों को प्रशिक्षित किया वह 1998 में ओसामा बिन लादेन द्वारा गठित किये गये इण्टरनेशनल इस्लामिक प्रफंट का घटक है। इस्लामी आतंकवाद और अल कायदा विषयों के विशेषज्ञ डा.रोहन गुणारत्ना के अनुसार अल कायदा मध्य पूर्व एशिया, उत्तरी अफ्रीका, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में अपनी गहरी पैठ बना चुका है। अल कायदा ने मीडिया, इंटरनेट के सहारे मुस्लिम उत्पीडऩ की अवधारणा के द्वारा समस्त विश्व के मुसलमानों के मध्य एक वातावरण बना दिया है कि इस्लाम खतरे में है और उसे निशाना बनाया जा रहा है। इस प्रचार ने सामान्य मुसलमानों को ध्रुवीकृत किया है और विशेष रूप से नयी पीढ़ी के मुसलमानों को अधिक कट्टरपंथी और मुखर बनाने का कार्य किया है। अल कायदा के इसी अभियान का परिणाम है कि अमेरिका की विदेश नीति और इजरायल तथा अरब देशों का संघर्ष सभी मुसलमानों के मध्य न केवल चर्चा का विषय बन चुका है वरन् इस्लामी आतंकवादियों के आक्रमणों को कुछ हद तक न्यायसंगत ठहराने का माध्यम भी बन चुका है। भारत के प्रसिध्द आतंकवाद प्रतिरोध के विशेषज्ञ बी रमन ने मुम्बई पर आतंकवादी आक्रमण के बाद अपने एक आलेख में इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि नवम्बर 2007 में उत्तर प्रदेश के न्यायालयों में श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों के बाद इसकी जिम्मेदारी लेने वाले इंडियन मुजाहिदीन संगठन को लेकर भारत सरकार और खुफिया एजेंसियों के पास अत्यन्त कम सूचनायें हैं। जबकि इसने 2007 से 2008 के मध्य अनेक बड़ी घटनायें अंजाम दी हैं। इंडियन मुजाहिदीन के कुछ लोग जब दिल्ली में हुए विस्फोटों के बाद पकडे गय़े तो उनके कार्य करने का ढंग, उनकी प्रेरणा और मीडिया का उनका उपयोग पूरी तरह अल कायदा से प्रभावित था और उनके पास से फिलीस्तीनी इस्लामी आतंकवादी अब्दुल्ला अज्जाम का साहित्य भी मिला था जो ओसामा बिन लादेन का गुरु है और अल कायदा उसी की जेहाद की भावना से प्रेरित है। इसी प्रकार मुम्बई पुलिस ने कुछ महीनों पूर्व जब इंडियन मुजाहिदीन के मीडिया विंग के लोगों को पकड़ा था तो उसमें भी अनेक तकनीक विशेषज्ञ पकडे गय़े थे। इंडियन मुजाहिदीन को जिस प्रकार से हल्के में लिया गया वह भारी पड़ सकता है क्योंकि इंडियन मुजाहिदीन के कार्य करने का तरीका पूरी तरह अल कायदा से प्रभावित है और यह इस आशंका को पुष्ट करता है कि विभिन्न देशों में विभिन्न इस्लामी संगठन सामने आ रहे हैं जो आवश्यक नहीं कि अल कायदा से सीधे-सीधे निर्देश ग्रहण करते हों पर वे उसी इस्लामी जेहादी विचार को आगे बढ़ाने के लिये कार्य कर रहे हैं। मुम्बई में हुए आतंकवादी आक्रमण के बाद एक बात पूरी तरह स्पष्ट है कि अब इस समस्या से अनेक स्तरों पर लडऩा होगा। इस प्रकार के आतंकवाद से लडऩे में खुफिया विभाग की सक्षमता और आतंकवाद प्रतिरोधी संस्थाओं का राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता प्रमुख तत्व हैं। किन्तु इसके अतिरिक्त इस समस्या से विचारधारागत स्तर पर भी लडऩा आवश्यक है। जिस प्रकार इस्लामी आतंकवादियों ने समस्त विश्व को 48 घण्टे से अधिक समय तक टीवी पर अपनी ताकत देखने के लिये बाध्य किया उसके दो निहितार्थ हैं। एक तो इससे सामान्य लोगों में आतंकवादियों के एजेण्डे को जानने की उत्सुकता होती है और दूसरा खौफ और अराजकता फैलती है और ये दोनों ही राज्य को कमजोर बनाती हैं। इसके अतिरिक्त इस प्रकार के कार्य न केवल फिदायीन बन कर जन्नत प्राप्त करने की इस्लामी आतंकवादियों की मंशा को उजागर करते हैं वरन् और अधिक युवकों को मुजाहिद्दीन के रूप में भर्ती होने के लिए प्रेरित करते हैं। क्योंकि ऐसे आतंकवादियों के लिये वल्र्ड ट्रेड सेंटर का भरभराता भवन और मैरियट होटल का धूं-धूं कर जलता दृश्य अधिक प्रेरित करता है। इस बात को समझने की आवश्यकता है और इसलिये इस्लामी जेहाद के इस आन्दोलन को उसकी समग्रता में समझ कर उसका समाधान करने की आवश्यता है। आज इस बात पर बहस करने से कोई लाभ नहीं है कि इस्लाम शांति की शिक्षा देता है कि नहीं और इसका भी कोई मतलब नहीं है कि कितने इस्लामी संगठनों ने आतंकवाद के विरूद्ध फतवा जारी किया है। आज मानवता के अस्तित्व का प्रश्न है और इस अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा किया है ऐसे इस्लामवादी आन्दोलन ने जो विश्व पर फिर से इस्लामी साम्राज्य स्थापित करने की आकांक्षा लिये शरियत का शासन स्थापित करना चाहता है और इसके लिये कुरान और हदीस का उपयोग कर रहा है। इस इस्लामवादी आन्दोलन ने प्रथम विश्व युध्द से द्वितीय विश्व युध्द के मध्य हुए नाजी आन्दोलन, फासीवादी आन्दोलन और शीत युध्द में चले कम्युनिस्ट आन्दोलन से अधिनायकवादी विचार लेकर एक नया आन्दोलन खड़ा किया है जिसने इस्लाम के अस्तित्व पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया है। मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण से एक सन्देश स्पष्ट है कि अब यदि समस्या को नहीं समझा गया और इसके जेहादी और इस्लामी पक्ष की अवहेलना की गयी तो शायद भारत को एक लोकतांत्रिक और खुले विचारों वाले देश के रूप में बचा पाना सम्भव न हो सकेगा। यही चिंता समस्त विश्व को हुई है कि कहीं इस्लामवादी आन्दोलन अब मध्य पूर्व के बाद दक्षिण एशिया में भी अपनी पैठ न बना ले क्योंकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश पहले ही इस्लामी चरमपंथियों के हाथों में खेल रहे हैं। भारत सहित दक्षिण एशिया की मुस्लिम जनसंख्या कुल जनसंख्या के 57 प्रतिशत से भी अधिक है और यदि यह क्षेत्र इस्लामी कट्टरपंथियों के हाथ में आ गया तो विश्व का नक्शा क्या होगा? अब पाकिस्तान और बांग्लादेश को दोष देने से ही काम नहीं चलेगा और इन देशों की खुफिया एजेंसियों द्वारा जिस प्रकार भारत में इस्लामी तत्वों में घुसपैठ की गयी है उस पर कठोर कदम उठाना होगा। विभिन्न इस्लामी विचारधाराओं चाहे वह अहले हदीस, बरेलवी, देवबन्द, सलाफी या वहाबी हो, इनसे सम्बन्धित मस्जिदों, मदरसों, आर्थिक स्रोतों पर नजर रखते हुए इनके इस्लामवादी आन्दोलन के साथ सम्बन्धों की जांच करते रहनी होगी। आज पाकिस्तान और बांग्लादेश की खुफिया एजेंसियों ने भारत के हर हिस्से में अपनी पैठ बना ली है। मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण ने हमें अंतिम अवसर दिया है कि हमारे राजनेता आतंकवाद को वोट बैंक की राजनीति से जोड़कर देखने के बजाए समस्या की गहराई को समझें और जानें कि आतंकवाद क्या है? इसके पीछे सोच क्या है? इसे कौन सहायता दे रहा है? न कि इस्लामी आतंकवाद के समानांतर हिन्दू आतंकवाद को खड़ाकर स्थिति को और अधिक उलझायें। मुम्बई पर हुए आतंकवादी आक्रमण ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को गहरा धक्का पहुंचाया है और हमारी कमजोरियों की पोल खोल दी है। आज विश्व स्तर पर भारत सरकार की नरम नीतियों को लेकर लेख लिखे जा रहे हैं। फिर भी लगता है कि कुछ ही दिनों में घटिया राजनीति फिर आरम्भ हो जायेगी और केन्द्र सरकार आतंकवाद को अल्पसंख्यक वोट से जोड़कर बयानबाजी और आरोप प्रत्यारोप आरम्भ कर देगी।

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