गुरुवार, 27 मई 2010

मां तो ऐसी होनी चाहिए

कहते हैं मनुष्य की सबसे पहली शिक्षक मां होती है। इसलिए जरूरी है कि उसका भी एक पाठ्यक्रम हो, ताकि वह एक आदर्श मां बन सके। यानी उसमें इतनी योग्यता हो कि वह अपने बच्चे का हर प्रकार से विकास कर एक सर्वगुण सम्पन्न मानव बना सके। जोकि भविष्य में एक आज्ञाकारी बेटा/बेटी होने के साथ-साथ सच्चा तथा ईमानदार देशभक्त भी बन सके। इस पाठ्यक्रम का सबसे पहला सबक है कि एक मां का उसके बच्चे के जीवन को संवारने में महत्वपूर्ण योगदान होता है। यदि वह चाहे तो उसे तराशकर सोना तक बना सकती है। एक पूर्ण मां वह है जो अपने बालक पर जैसा लिख दे वह वैसा ही हो जाए। यथा- मदालसा अपने तीन पुत्रों पर वैरागी लिखती है तो वे वैरागी और एक पर राजा लिखती है तो वह राजा बनता है। इसी प्रकार जीजाबाई अपने पुत्र पर शिवाजी, यशोदा कृष्ण और कौशल्या राम लिखती है, तो वे वही बन जाते हैं। एक महिला के मां बनते ही उसका शिक्षक जीवन शुरू हो जाता है, परन्तु याद रहे एक अच्छा शिक्षक वही होता है जो सदा शिक्षार्थी भी बना रहे। बालक के धरती पर जन्म लेते ही मां को उसका पाठ्यक्रम शुरू कर देना चाहिए। जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाए उसका परिचय उसके पिता, दादा-दादी, नाना-नानी आदि परिजनों से कराना। साथ ही उसके वंश से भी उसका परिचय कराना, फिर आगे बढक़र उसका परिचय चंदा, सूरज और ध्रुव से भी कराना। उसका परिचय हिमालय के संयम और अडिगता भी कराना। बालक को यह भी बताना कि वह गंगा की तरह चंचल और सागर की तरह गंभीर रहे। अत: बहुत जरूरी होने पर ही वह अपना संयम तोड़े। उसे यह भी बताना कि वह छायादार वृक्षों की तरह ऊपर की ओर बढ़े, मन में निराशा कभी न लाए। उसे यह भी जरूर बताइए कि वह जिस समाज में रह रहा है, वह क्या, कितना, कहां और कैसा है? उसे यह बताना भी जरूरी है कि हर आदमी का वास्तविक पिता एक ही है और वह परमात्मा है तथा सभी की असली मां यही धरती है। उसे यह भी बताइए कि वह जिन-जिन लोगों की गोद में खेला है, जिनके हाथों में झूला है, वह उन्हें बड़ा होकर भी न भूले। बालक को यह बताना भी जरूरी होगा कि कोई भी जाति अच्छी या बुरी नहीं होती, अच्छा या बुरा तो आदमी होता है। इसलिए जरूरी है कि वह एक अच्छा आदमी बने। उसे यह भी बताना होगा कि वह संसार का सबसे धनिक व्यक्ति होने पर भी संसार के सबसे न्यूनतम स्तर के आदमी जितना ही उपभोग करे। उसे यह भी बताना कि वह खाद्य वस्तुओं को सब में बांटकर खाए। उसे यह भी बताइए कि वह अच्छी और बुरी बातों में भेद करना शुरू करे, यह उसकी प्रगति के लिए अच्छा साबित होगा। उसे बताना होगा कि गलत आदमी को मारने के लिए ही नहीं, बल्कि समझाने के लिए भी शक्तिशाली होना जरूरी है। उसे बताइएगा कि वह जोश में होश कभी न खोए। जीवन में वह शक्ति के संतुलन को भी समझे। उसे यह बताना भी जरूरी है कि उसका सामना गलत रास्तों पर ले जाने वाले गलत लोगों से जरूर होगा और जब ऐसे लोगों से उसका सामना होगा तो उसके साथ कोई नहीं होगा। ऐसे में उसे अकेले ही अपना बचाव करना होगा। उसे जीवन के हर रहस्य को समझने के लिए प्रेरित करना होगा। उसे सम्पन्नता और विपन्नता में समान रूप से रहने के लिए बताएं। ध्यान रहे उसमें अहंकार के अकुंर कभी भी पैदा न हों। परन्तु सबसे पहले बालक इन सब बातों को अपनी मां में देखना शुरू करेगा। इसलिए मां इसे वास्तव में एक सर्वगुण सम्पन्न व्यक्ति बनाना चाहती है तो इन सब बातों पर अमल करने की उसे स्वयं शुरुआत करनी होगी।

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