गुरुवार, 27 मई 2010

अरुणाचल का सच : मतांतरण में जुटे हैं आतंकी गुट

भारत के कुछ राज्यों में मतांतरण पर प्रतिबंध है, इनमें पूर्वोत्तर का अरुणाचल प्रदेश भी है। बावजूद इसके अरुणाचल प्रदेश में चोरी-छिपे या कुछ जगहों पर सार्वजनिक रूप से जनजातियों का मतांतरण हो रहा है। अरुणाचल प्रदेश के बारे में शेष भारत में जो जानकारी लोगों को है उससे लोग यही जानते हैं कि अरुणाचल प्रदेश के ज्यादातर लोग ईसाई हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि अरुणाचल प्रदेश के लोग बौद्ध हैं। हाल ही में बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा जब अरुणाचल प्रदेश के तवांग बौद्ध मठ के दौरे पर आए तब ऐसा लग रहा था कि यहां के सारे लोग बौद्ध हैं। पर वस्तुस्थिति यह है कि अरुणाचल प्रदेश के कुछ जिलों में चर्च प्रेरित आतंकवादी एवं अलगाववादी संगठन एन.एस.सी.एन (आई.एम.) तथा एन.एस.सी.एन. (खाफलांग) गुटों की राष्ट्रविरोधी गतिविधियां तेज हैं। इनका एक प्रमुख काम यह भी है कि आतंक का माहौल बनाकर स्वधर्मनिष्ठ, प्रकृतिपूजक सरल जनजातियों को ईसाई मत की ओर धकेलना। दूसरा प्रमुख काम है- छापामार लड़ाई के द्वारा नागालैण्ड एवं उससे सटे हुए असम (उत्तर कछार एवं कार्विआंग्लांग जिला) एवं मणिपुर प्रान्त के नागा जनजाति के क्षेत्रों को वृहत्तर नागालैण्ड या नागालिम में शामिल करना। यह 1947 से लगातार चल रहा है। 1987 से उत्तर पूर्व के सबसे ताकतवर आतंकी गुट एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) का केन्द्र सरकार के साथ युद्धविराम समझौता है। एक बार समय सीमा खत्म होने के बाद दोबारा समय सीमा बढ़ाई जाती है। उधर इस गुट के शीर्ष नेता इसाक चीस्वू एवं थांग्लांग मिनाबा केवल शांति वार्ता के समय भारत सरकार के अतिथि के रूप में भारत आते हैं, बहुचर्चित नागा शांति-वार्ता में शामिल होते हैं एवं वार्ता के बाद उनके यूरोप के एमस्टर्डम वापस चले जाते हैं। इन दिनों भी केन्द्र सरकार के साथ उनकी शान्ति वार्ता चालू है। अब तक लगभग पचास बार शान्ति वार्ता हो चुकी है, पर परिणाम शून्य ही रहा है। लेकिन इस बीच जनता एवं सुरक्षा बलों को मिलाकर 25 हजार से अधिक लोग इन गुटों की हिंसा का शिकार बन चुके हैं। शांति वार्ता के चलते नागा आतंकी गुटों के बीच आपसी लड़ाई में भी 500 नागा युवकों को जान से हाथ धोना पड़ा। यह एक कड़वा सच है। इस बार "ऑल नागा स्टूडेंट्स यूनियन" एवं कुछ जनजाति समाज के नेताओं ने भी दबाव डाला है, ताकि नागा गुटों के बीच संघर्ष बंद हो। इस बार की वार्ता में क्या सफलता मिलती है, यह तो कुछ ही दिनों में साफ हो जायेगा। वार्ता के दौरान स्वयं गृहमंत्री पी. चिदम्बरम कुछ कहने से बचते रहे। इस बार श्री पाण्डे नए मध्यस्थ थे। इससे पूर्व केन्द्रीय गृहसचिव पद्मनाभैया कुछ समय के लिए शांति वार्ता के मध्यस्थ थे। मगर उस समय स्थिति और भी बिगड़ी थी। मणिपुर के लोगों ने इस डर से विरोध प्रदर्शन करके काफी हल्ला मचाया कि उनके कुछ क्षेत्रों को वृहत्तर नागालैण्ड में शामिल न कर दिया जाये। उधर जनजातियों के धर्म-संस्कृति की रक्षा के लिए अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम की प्रेरणा से बना "जनजाति संस्कृति सुरक्षा मंच" विक्रम बहादुर जमातिया के नेतृत्व में काफी सक्रिय है। अधिकतर जनजाति अपनी परम्परा के अनुसार उनकी भाषा में चन्द्र-सूर्य देवता को डोनी-पोलो बोलते हैं। सन् 2001 की जनगणना के अनुसार अरुणाचल प्रदेश में हिन्दू 34.6 प्रतिशत व अन्य जनजाति 30.7 प्रतिशत हैं, जिनमें से अधिकतर लोग डोनी-पोलो के उपासक हैं ईसाई 18.7 प्रतिशत, मुसलमान 1.9 प्रतिशत, बौद्ध 13 प्रतिशत, सिख 0.1 प्रतिशत तथा जैन 0.1 प्रतिशत हैं। लेकिन यहां जिस तरह आतंकी गुटों की आड़ में ईसाई मिशनरियां मतांतरण में सक्रिय हैं, उससे अरुणाचल में तेजी से जनसांख्यिकी परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है।

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